Tuesday, 28 February 2023

'अनुवाद कार्यशाला' का आयोजन

 राजकीय महिला स्नातकोत्तर महविद्यालय कांधला शामली तथा अज़ीम प्रेमजी वि. वि बंगलौर के संयुक्त तत्वावधान में एक 'अनुवाद कार्यशाला' का आयोजन महविद्यालय के सभागार में आयोजित किया गया। इस कार्यशाला का विषय ' हिंदी मे ज्ञान सृजन व अनुवाद' रहा। इस कार्य शाला में अज़ीम प्रेमजी वि वि बंगलौर से मुख्य वक्ता के रूप में डा. विप्लव कुमार सिंह, विशिष्ट वक्ता के रूप मे मृत्युंजय त्रिपाठी, अन्य वक्ता के रूप मे श्री पीयूष शुक्ला उपस्थित रहे। जैन कन्या पाठशाला पी जी कॉलेज मुज़फ्फरनगर की प्राचर्या प्रो सीमा जैन भी रिसोर्स पर्सन के रूप में उपस्थित रहीं। कार्य शाला की अध्यक्षता महविद्यालय की प्राचार्या प्रो श्रीमती प्रमोद कुमारी ने किया।

         सर्व प्रथम अध्यक्ष व अतिथियों में माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन किया। छात्राओं ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया। अतिथियों के स्वागत के क्रम मे अध्यक्षता कर रहीं प्राचार्या व उपस्थित अतिथियों को पुष्प कालिका देकर स्वागत किया गया व छात्राओं ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। 

                  अनुवाद कार्यशाला में विचार विमर्श के क्रम में सबसे पहले डा.मृत्युंजय त्रिपाठी ने हिंदी मे ज्ञान सृजन की परिस्थिति का चित्रण करते हुए कहा कि विज्ञान व सामाजिक विज्ञानों में अंग्रेज़ी का वर्चस्व है व हिंदी को ज्ञान सृजन की भाषा के रूप मे नहीं समझा जाता पर हिंदी सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। इसलिए जरूरी है कि हिंदी को ज्ञान की भाषा बनाया जाय, इसके लिए अनुवाद एक महत्वपूर्ण माध्यम है। 

       मुख्य वक्ता डा. विप्लव कुमार सिंह ने कार्यशाला में उपस्थित छात्र- छात्राओं व प्रतिभागी शिक्षकों से विचार विनिमय के माध्यम से बताया कि छात्रों को उच्च शिक्षा में अवसर अंग्रेज़ी भाषा मे ही मिल पाता है ऐसे मे हिंदी भाषा में अध्ययन करने वाले छात्र पीछे रह जाते हैं। उन्हे मुख्य धारा में आने के लिए अंग्रेज़ी का ज्ञान हासिल करना पड़ता है। ऐसे में ज्ञान सृजन हिंदी मे न होकर हमे अंग्रेज़ी पर निर्भर होना पड़ता है। हिंदी में ज्ञान सृजन के लिए जरूरी है कि वैज्ञानिक ज्ञान को भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल अनुवादित किया जाए और मौलिक चिंतन व अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने कहा कि अनुवाद एक जटिल त्रिस्तरीय प्रक्रिया है जिसमे प्रथम स्तर पर प्राथमिक अनुवाद, दूसरे स्तर पर उसकी समीक्षा व तृतीय स्तर पर उसे पाठ के रूप में प्रस्तुतिकरण। उन्होंने अज़ीम प्रेमजी विवि के 'अनुवाद संपदा' प्रभाग के बारे मे विस्तृत जानकारी दी तथा अनुवाद करने के इच्छुक प्रतिभागियों को अनुवाद हेतु प्रोत्साहित व प्रेरित करने वाले कार्यक्रमों के बारे में बताया। 

       डा. पीयूष शुक्ला ने सामाजिक क्षेत्र मे रोजगार की संभावनाओ पर एक प्रस्तुतिकरण दिया। 

       रिसोर्स पर्सन प्रो सीमा जैन ने प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व के विषय में बताया कि औपनिवेशिक काल मे अंग्रेज़ों ने अनुवाद के माध्यम से इस ज्ञान का फायदा उठाया लेकिन हम पीछे रह गए। आज की तारीख में हमे भी विदेशों के तकनीकी ज्ञान व विज्ञान को अनुवाद के माध्यम से अपनाना चाहिए। 

              अध्यक्षता कर रहीं प्राचार्या प्रो श्रीमती प्रमोद कुमारी ने कहा कि आज के वैश्वी करण के युग में प्रत्येक क्षेत्र मे प्रगति के लिए अनुवाद अनिवार्य है। प्राचीन काल मे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारतीय ज्ञान को भारत की सीमाओं से बाहर फैलाया, अनुवाद उसका माध्यम थी। संस्कृत का विकास इसलिए नहीं हुआ कि वह वर्ग विशेष की भाषा बन कर रह गई। आधुनिक युग में विभिन्न संस्कृतियों का आदान प्रदान अनुवाद के माध्यम से होता है। पुनर्जागरण के दौर में विश्व की श्रेष्ठ रचनाओं का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हुआ। जिसमे प्रमुख रूप से तलास्टाय, शेक्सपियर, गीतांजलि, व मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ शामिल है। व्यापार वाणिज्य के लिए भी अनुवाद आवश्यक है। अनुवाद चंहु मुखी विकास के लिए आवश्यक है। 

      कार्य शाला में डी ए वी कॉलेज मु. नगर से प्रो नवीन शर्मा, प्रो विपिन जैन, डा अक्षय कुमार, के के जैन कॉलेज खतौली से प्रो रीना मित्तल, जैन कन्या पाठ शाला पी जी कॉलेज से डा सविता वशिष्ठ, डा रेशु चौहान, डा पूनम शर्मा, डा मनीषा अग्रवाल, वी वी कॉलेज शामली से डा छवि संगल ने प्रतिभाग किया इनके अतिरिक्त विभिन्न महविद्यालय से 100 की संख्या में छात्र छात्राओं ने प्रतिभाग किया। सभी अतिथियों व वक्ताओं व अध्यक्ष का सम्मान स्मृति चिन्ह देकर किया गया। संचलान डा रामायन राम ने किया। कार्य शाला का समापन राष्ट्र गान के साथ किया गया। महाविद्यालय का समस्त स्टाफ उपस्थित रहा ।