Monday, 8 March 2021

महाविद्यालय में हुआ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन

 राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला में आज दिनांक 8 मार्च 2021 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन बड़े उत्साह के साथ किया गया। कार्यक्रम का आयोजन महिला प्रकोष्ठ के द्वारा किया गया। सर्वप्रथम संचालन कर रही डॉ दीप्ति चौधरी (संयोजिका महिला प्रकोष्ठ) ने छात्राओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संक्षिप्त इतिहास का वर्णन करते हुए बताया कि सन् 19O8 में जब 15000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क में रैली निकालकर मताधिकार, बेहतर वेतन एवं अन्य अधिकारों की मांग की थी तभी से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखी गई। सन्1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक थीम के साथ इस दिवस को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाए जाने की स्वीकृति प्रदान की। इस वर्ष की थीम है 'चुनौती के लिए चुने' व 'महिला नेतृत्व : कोविड-19 की दुनिया में समान अवसर प्राप्त करना'। यह थीम कोरोना काल में सेवाएं देने वाली महिलाओं के योगदान को रेखांकित करने के लिए चुनी गई है। आज इस दिवस के अवसर पर एक नाटक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें  फरहा, शिवानी, खुशबू, तहूरा, सदफ, आरती, कलश की टीम प्रथम स्थान पर एवं महक, सानिया, मुस्कान, एकता, स्नेहा, नैयर, शालू की टीम द्वितीय स्थान पर रही। कार्यक्रम में आयशा, सरिता, कोमल, निशा आदि छात्राओं ने अपने गीत आदि की प्रस्तुति दी। शारीरिक शिक्षा विभाग द्वारा आज  'शारीरिक शिक्षा में महिलाओं की भूमिका' विषय पर एक भाषण प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें  शिवानी वर्मा प्रथम, तहुरा अंजूम |द्वितीय एवं फरहा तृतीय स्थान पर रही।डॉ विशाल कुमार (प्राध्यापक भौतिकी) ने द्दात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपने उत्थान के लिए अपना लक्ष्य निर्धारित करने के साथ उसे प्राप्त करने के लिए पर्याप्त प्रयत्न करना है। समाज में महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए सभी परिस्थितियों के साथ लड़ते हुए प्रयत्न जारी रखना चाहिए। महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी जी ने समस्त मौजूद प्राध्यापक एवं छात्राओं को नारी सुरक्षा एवं सम्मान की शपथ दिलाते हुए संबोधित किया कि महिलाओं के बिना विकास की परिकल्पना संभव नहीं है। महिलाओं में स्वत: ही प्रबंधन एवं सृजनशीलता का गुण होता है। आज की बालिकाओं को अपनी भारतीय संस्कृति के मूल्यों को याद रखते हुए अपने बड़ों का आदर सत्कार करना चाहिए। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें नदियों के समान निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए। "कर्म तुम्हारा सदा अटल हो, कर्म तुम्हारी भाषा हो। हो सत्कर्म तुम्हारी मृत्यु, यही जीवन की अभिलाषा हो।" वचनों के साथ उन्होंने अपनी वाणी को विराम दिया।