• राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला शामली में 'नई शिक्षा नीति 2020 में भाषा, साहित्य व कला के संवर्द्धन के विविध आयाम ' विषय पर एक दिवसीय वेबिनार का आयोजन
• वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप मे पूर्व निदेशक उच्च शिक्षा, उत्तर प्रदेश प्रयागराज, प्रो. राजेंद्र पाल सिंह रहे, विशिष्ट अतिथि डॉ. रुखसाना परवीन भूतपूर्व प्रवक्ता संस्कृत पूर्व प्रभारी प्रचार्या राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला शामली, रहीं। अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने किया।
कांधला/31 अगस्त/ राजकीय महिला स्नताकोत्तर महाविद्यालय कांधला शामली के तत्वावधान में ' नई शिक्षा नीति 2020 में भाषा, कला व संस्कृति के संवर्द्धन के विविध आयाम ' विषय पर एक दिवसीय वेबिनार का आयोजन जूम एप के माध्यम से किया गया। इस वेब संगोष्ठी की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने किया। मुख्य अतिथि पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक उत्तर प्रदेश, प्रयागराज प्रो. राजेंद्र पाल सिंह जी रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में महाविद्यालय की भूतपूर्व रीडर संस्कृत व पूर्व प्रभारी प्राचार्या डॉ. रुखसाना परवीन रहीं।
वेबिनार का शुभारंभ प्रात: 10 बजे सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात महाविद्यालय कुलगीत का प्रस्तुतिकरण किया गया। छात्रा शालू व रूबी ने अतिथियों के स्वागत के लिए स्वागतगीत प्रस्तुत किया।
वेबिनार के उदघाटन सत्र को करते हुए विशिष्ट अतिथि रुखसाना परवीन ने संस्कृत भाषा के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति के विकास मे भाषा के योगदान पर चर्चा की। नई शिक्षा नीति मे संस्कृत के विकास हेतु किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। कहा कि इसके भारतीय शिक्षा प्रणाली पर दूरगामी परिणाम होंगे।
मुख्य अतिथि पूर्व शिक्षा निदेशक प्रो. राजेंद्र पाल सिंह ने कहा कि भारत मे मैकाले की शिक्षा नीति का प्रभाव रहा है, इसलिए उपनिवेशवादियों की भाषा का प्रभाव हमारी शिक्षा संस्कृति पर रहा है। उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा मे प्रदान करने से ज्ञान का मौलिक विकास होगा और भारतीय संस्कृति का भी उन्नयन होगा। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन का कार्य अध्यापकों को करना है इसलिए इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अध्यक्षता कर रहीं महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने कहा कि शिक्षा नीति मे भारतीय भाषाओं, कला व संस्कृति के संरक्षण की उपेक्षा होती रही है। प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व मे यह प्रयास प्रारम्भ हुआ है जो भारतीय संस्कृति व गौरवशाली परम्परा को विश्व पटल पर पुनर्स्थापित करेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा सीधे तौर पर हमारी संस्कृति से जुडती है। वर्तमान महामारी के दौर में भारतीय जीवन शैली ने पूरे विश्व को रास्ता दिखाया है। भारतीय शिक्षा भी एक दिन पूरे विश्व का मार्गदर्शन करेगी।
उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र प्रारम्भ हुआ। कुरुक्षेत्र विवि कुरुक्षेत्र हरियाणा के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डा. राम चंद्र ने वेबिनार के समग्र विषय के आधार पर बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इसके पहले जितनी भी शिक्षा नीति बनी थी उसमे सब कुछ था पर भारतीयता नहीं थी। उन्होंने कहा कि भारतीयता का अर्थ है प्राचीन परम्परा, जिसके मूल में धर्म है। उन्होंने पाणिनि के अष्टाध्यायी के हवाले से कहा कि अष्टाध्यायी के 4000 सूत्रों मे एक अद्भुत भाषाई तकनीक के बीज छुपे हैं। इसमे भाषा के करोड़ों शब्दों को पुनर्जीवित करने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति उसी प्राचीन ज्ञान एवं विचारपरम्परा के आलोक में आधुनिक शिक्षा को प्रतिष्ठित करने का प्रयास करती है।
महात्मा गांधी केंद्रीय विवि मोतिहारी बिहार के संस्कृत विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. विश्वेश वाग्मी ने कहा कि मैकाले की शिक्षापद्धति ने ऐसे शिक्षित भारतीय पैदा कर दिये थे जो हीनता बोध से ग्रस्त थे। जिससे शिक्षित अनुचरों का निर्माण हुआ। उन्होंने कहा कि गौरवशाली इतिहास का ज्ञान कराने का काम नई शिक्षा नीति मे किया गया है।
एम एम एच कॉलेज, गाजियाबाद के समाजशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. राकेश राणा ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 में स्थानीयता व सार्वभौमिकता के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है। इसमे ज्ञान आधारित समाज की रचना और गुणवत्ता आधारित वर्क फोर्स बनाने पर जोर है। भारतीय कला व संस्कृति दुनिया मे कैसे बड़े अवदान कर सके इस पर विचार किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत की लोक संस्कृति व आदिवासी संस्कृति से भी सीखने की जरूरत है।
एम एम एच कॉलेज के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. क्रांतिबोध निराला ने कहा कि स्थानीय भाषाओं व लोक भाषाओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। संस्कृत भाषा पर इस नीति मे जोर है पर अन्य भारतीय भाषाऐं उपेक्षा का शिकार नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि त्रिभाषा फॉर्मूला पहले भी शिक्षा नीति का हिस्सा थी पर अभी तक उसको लागू नहीं किया जा सका है। उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों पर नियंत्रण करने की योजना होगी तभी त्रिभाषा सूत्र ठीक से लागू होगा।
दयालसिंह कॉलेज दिल्ली विवि से जुड़े हिंदी के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रमा शंकर कुशवाहा ने कहा कि संस्कृत भाषा को केवल विवाह आदि मांगलिक कार्यों तक सीमित कर विकास नहीं किया जा सकता। उसे बाजार और अवसर की भाषा बनाना पड़ेगा। भारत में स्थानीय भाषा और मातृ भाषा में शिक्षा देने के लिए अध्यापकों को प्रशिक्षित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति ही वास्तविक संस्कृति है। लोक भाषा और लोक संस्कृति का संरक्षण व संवर्द्धन जरूरी है।
वेबिनार के संयोजक महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग प्रभारी डा. ब्रजभूषण जी ने सभी वक्ताओं के विचारों का सार संकलन प्रस्तुत किया।
महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. प्रमोद कुमारी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन मे संस्कृत भाषा के संरक्षण को जरूरी बताया। उन्होने कहा कि गुलामी की मानसिकता से उबरने व अपने देश व संस्कृति के प्रति गौरव का भाव जगाने के लिए अपनी भाषा और संस्कृति का विकास जरूरी है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 कई स्तरों पर जाँच परख कर सरकार व शिक्षाविदों द्वारा तैयार की गई है। निश्चित तौर पर यह हमारे बच्चों के भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होगी।
उद्घाटन सत्र का संचालन प्रवक्ता हिंदी डा. रामायन राम व तकनीकी सत्र का संयोजन प्रवक्ता संस्कृत डा. विनोद कुमार ने किया। अतिथियों, वक्ताओं व श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन वेबिनार के आयोजन सचिव डा. ब्रिजेश राठी, प्रवक्ता वनस्पति विज्ञान ने किया।
डा. विजेंद्र सिंह व डा सुनील कुमार ने तकनीकी पक्ष का संयोजन किया। इस अवसर पर डा. दीप्ति चौधरी, डा. विशाल कुमार, डा. प्रदीप कुमार, श्रीमती सीमा सिंह, डा. पंकज चौधरी, श्रीमती अंशु समेत सभी प्राध्यापकगण उपस्थित रहे। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।