एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब के अन्तर्गत
द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आज उद्घाटन
● राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला, शामली, उ०प्र०, के 'एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब' के द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबनार आज प्रारम्भ हुआ।
● 'भारतीय संस्कृति के अवलोकनार्थ ऐतिहासिक अभिलेख एवम् धरोहर' विषयक वेबिनार में मख्य अतिथि के रूप में पूर्व निदेशक (उच्च शिक्षा), प्रो. आर. पी. सिंह शामिल हुए। अध्यक्षता प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने किया।
कांधला/ 2 जुलाई/ राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कांधला, शामली, उ०प्र०, के 'एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब' के तत्वावधान में दो दिवसीय वेबिनार का प्रथम दिवसीय कार्यक्रम आज सम्पन्न हुआ। वेबिनार का विषय 'भारतीय संस्कृति के अवलोकनार्थ ऐतिहासिक अभिलेख एवम् धरोहर' रहा।
वेबिनार का विधिवत शुभारंभ आज पूर्वान्ह 10 बजे सरस्वती वंदना से हुआ।प्राचार्या, प्रो. प्रमोद कुमारी ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन किया। छात्रा गुलशन व आँचल ने सरस्वती वन्दना के मंत्रों का पाठ किया तथा इति जैन व स्वाति जैन ने महाविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया।
वेबिनार के आयोजन सचिव, डॉ. विशाल कुमार ने दो दिवसीय कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की तथा क़ुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला।
महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने उद्घाटन वक्तव्य देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति अति प्राचीन व निरन्तर गतिमान है। उन्होंने प्राकृतिक व मानव निर्मित विरासत का अर्थ स्पष्ट करते हुए उदाहरण सहित बताया।उन्होंने मोहनजोदड़ो व हड़प्पा से लेकर मौर्य साम्राज्य,सम्राट अशोक के समय के वैभव से लेकर वर्तमान समय के सांस्कृतिक विकास को अपने व्यख्यान में समाहित किया।उन्होंने कहा कि प्राचीन मंदिरों से लेकर मुगलकालीन इमारतों ताजमहल व लाल किला जैसे ऐतिहासिक इमारतें हमारी विशाल सांस्कृतिक परम्परा के अभिलेख हैं।उन्हें संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है।
वेबिनार के मुख्य अतिथि पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक, प्रो. आर.पी. सिंह ने कहा कि संस्कृति कोई जड़ और ठहरी हुई वस्तु नहीं है वह निरन्तर विकासमान है।उन्होंने गुरु शिष्य परम्परा के आलोक में ऑनलाइन शिक्षण की सीमाओं पर भी विचार करने का आह्वान किया।
वेबिनार के तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए जे. वी. जैन कॉलेज, सहारनपुर, उ०प्र०, के भूगोल विषय के अवकाश प्राप्त एसोसिएट प्रो. डॉ. एस.सी. बंसल ने भारत के नगरीय संस्कृति के अभिलेखों की चर्चा की।उन्होंने कहा कि भारत मे नगरों के प्राचीन भवन अपने भीतर प्राचीन संस्कृति के प्रमाण छिपाए रहते हैं।उन्होंने संस्कृति के धरोहर को स्पृश्य व अस्पृश्य कोटियों में विभाजित किया।उन्होंने कहा कि शहरों के भवन स्पृश्य धरोहर होते है व त्योहार व मेले इत्यादि अस्पृश्य धरोहर होते हैं।उन्होने अजंता व एलोरा की गुफाओं, गेटवे ऑफ इंडिया, इंडिया गेट, ताजमहल, लाल किला एवं प्राचीन मन्दिरों के बारे में विस्तार से बताया।उन्होंने नगरों के विकास में नदियों की भूमिका पर बल दिया और कहा सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मुग़लकालीन नगर व्यवस्था में नदियों के जल का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।
तकनिकी सत्र के दूसरे वक्ता 'राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कांधला, शामली, उ०प्र०, के एसोसिएट प्रोफेसर ( समाजशास्त्र), डॉ. बृजभूषण ने 'भारतीय संस्कृति में धर्म की अवधारणा' विषय पर व्याख्यान दिया।अपने व्यख्यान में उन्होंने रिलीजन व धर्म मे भेद करते हुए कहा कि ये दोनों शब्द समानार्थी नही हैं।रिलीजन एक संकुचित अवधारणा है जबकि धर्म एक व्यापक अवधारणा है जिसमे नास्तिक से लेकर विभिन्न मतों को मानने वालों को समाहित किया जा सकता है।उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म नही बल्कि एक जीवन पद्धति है।धर्म का अर्थ है धारण करना।सनातन धर्म की यही विशेषता है कि वह प्रश्न व अविश्वास का निराकरण करता है।यह प्रचारमूलकता व धर्मांतरण पर विश्वास नहीं करता।यह धर्म भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है।उन्होंने धर्म के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।
इसके पश्चात शोध पत्र प्रस्तुतिकरण का सत्र आयोजित हुआ,जिसमे विभिन्न विश्वविद्यालयो के प्राध्यापक , शोधार्थी व छात्रों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।आज के तकनीकी सत्र में श्री राजन फोगाट, शोध छात्र बीएचयू , वैशाली बिहार से इतिहास के प्राध्यापक डॉ. नागेश्वर कुमार, राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय की छात्रा कु. हनी (बी. एस-सी. द्वितीय वर्ष) एवं कु. निधि शर्मा (बी. एस-सी. द्वितीय वर्ष) तथा अन्तरराष्ट्रीय तुलसी संस्थान, सोरों के श्री उमेश पाठक के शोध पत्र प्रमुखतया प्रस्तुत हुए।
वेबिनार का संचालन संस्कृत विभाग के प्रभारी डॉ. विनोद कुमार ने किया। उन्होंने साथ ही साथ विषय से सम्बधित सारगर्भित टिप्पणियां कीं।
अध्यक्षता कर रही महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. प्रमोद कुमारी ने सभी वक्ताओं के विचारों का सार संग्रह प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत की संस्कृति विविधता में एकता में विश्वास रखती है भारत पर अनेकों आक्रमण हुए हैं लेकिन उन्हें झेलते हुए उनके सकारात्मक तत्वों को समाहित करके भारतीय संस्कृति आगे बढ़ती जा रही है।उन्होंने कहा कि हमे भारतीय संस्कृति के अभिलेखों व धरोहरों को संरक्षित करते हुए अपनी आने वाली पीढियों को अग्रसारित करना है।इसलिए अपनी धरोहरों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
आज के वेबिनार मे तकनीकी व्यवस्था, वेबिनार के संयोजक, डॉ. विजेंद्र सिंह के निर्देशन में सम्पन्न हुईं। इस अवसर पर आयोजन समिति के सभी सदस्यों, डॉ. बृजभूषण, डॉ. विजेंद्र सिंह, डॉ. विशाल कुमार, डॉ. विनोद कुमार, डॉ. ब्रिजेश राठी, डॉ. सुनील कुमार,डॉ. दीप्ति चौधरी,डॉ. प्रदीप कुमार,डॉ. पंकज चौधरी, श्रीमती सीमा सिंह,श्रीमती अंशु सिंह, डॉ. रामायन राम ने आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना बहुमूल्य सहयोग दिया।राष्ट्रगान के साथ आज का एकदिवसीय कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आज उद्घाटन
● राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला, शामली, उ०प्र०, के 'एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब' के द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबनार आज प्रारम्भ हुआ।
● 'भारतीय संस्कृति के अवलोकनार्थ ऐतिहासिक अभिलेख एवम् धरोहर' विषयक वेबिनार में मख्य अतिथि के रूप में पूर्व निदेशक (उच्च शिक्षा), प्रो. आर. पी. सिंह शामिल हुए। अध्यक्षता प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने किया।
कांधला/ 2 जुलाई/ राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कांधला, शामली, उ०प्र०, के 'एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब' के तत्वावधान में दो दिवसीय वेबिनार का प्रथम दिवसीय कार्यक्रम आज सम्पन्न हुआ। वेबिनार का विषय 'भारतीय संस्कृति के अवलोकनार्थ ऐतिहासिक अभिलेख एवम् धरोहर' रहा।
वेबिनार का विधिवत शुभारंभ आज पूर्वान्ह 10 बजे सरस्वती वंदना से हुआ।प्राचार्या, प्रो. प्रमोद कुमारी ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन किया। छात्रा गुलशन व आँचल ने सरस्वती वन्दना के मंत्रों का पाठ किया तथा इति जैन व स्वाति जैन ने महाविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया।
वेबिनार के आयोजन सचिव, डॉ. विशाल कुमार ने दो दिवसीय कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की तथा क़ुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला।
महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने उद्घाटन वक्तव्य देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति अति प्राचीन व निरन्तर गतिमान है। उन्होंने प्राकृतिक व मानव निर्मित विरासत का अर्थ स्पष्ट करते हुए उदाहरण सहित बताया।उन्होंने मोहनजोदड़ो व हड़प्पा से लेकर मौर्य साम्राज्य,सम्राट अशोक के समय के वैभव से लेकर वर्तमान समय के सांस्कृतिक विकास को अपने व्यख्यान में समाहित किया।उन्होंने कहा कि प्राचीन मंदिरों से लेकर मुगलकालीन इमारतों ताजमहल व लाल किला जैसे ऐतिहासिक इमारतें हमारी विशाल सांस्कृतिक परम्परा के अभिलेख हैं।उन्हें संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है।
वेबिनार के मुख्य अतिथि पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक, प्रो. आर.पी. सिंह ने कहा कि संस्कृति कोई जड़ और ठहरी हुई वस्तु नहीं है वह निरन्तर विकासमान है।उन्होंने गुरु शिष्य परम्परा के आलोक में ऑनलाइन शिक्षण की सीमाओं पर भी विचार करने का आह्वान किया।
वेबिनार के तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए जे. वी. जैन कॉलेज, सहारनपुर, उ०प्र०, के भूगोल विषय के अवकाश प्राप्त एसोसिएट प्रो. डॉ. एस.सी. बंसल ने भारत के नगरीय संस्कृति के अभिलेखों की चर्चा की।उन्होंने कहा कि भारत मे नगरों के प्राचीन भवन अपने भीतर प्राचीन संस्कृति के प्रमाण छिपाए रहते हैं।उन्होंने संस्कृति के धरोहर को स्पृश्य व अस्पृश्य कोटियों में विभाजित किया।उन्होंने कहा कि शहरों के भवन स्पृश्य धरोहर होते है व त्योहार व मेले इत्यादि अस्पृश्य धरोहर होते हैं।उन्होने अजंता व एलोरा की गुफाओं, गेटवे ऑफ इंडिया, इंडिया गेट, ताजमहल, लाल किला एवं प्राचीन मन्दिरों के बारे में विस्तार से बताया।उन्होंने नगरों के विकास में नदियों की भूमिका पर बल दिया और कहा सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर मुग़लकालीन नगर व्यवस्था में नदियों के जल का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है।
तकनिकी सत्र के दूसरे वक्ता 'राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कांधला, शामली, उ०प्र०, के एसोसिएट प्रोफेसर ( समाजशास्त्र), डॉ. बृजभूषण ने 'भारतीय संस्कृति में धर्म की अवधारणा' विषय पर व्याख्यान दिया।अपने व्यख्यान में उन्होंने रिलीजन व धर्म मे भेद करते हुए कहा कि ये दोनों शब्द समानार्थी नही हैं।रिलीजन एक संकुचित अवधारणा है जबकि धर्म एक व्यापक अवधारणा है जिसमे नास्तिक से लेकर विभिन्न मतों को मानने वालों को समाहित किया जा सकता है।उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म नही बल्कि एक जीवन पद्धति है।धर्म का अर्थ है धारण करना।सनातन धर्म की यही विशेषता है कि वह प्रश्न व अविश्वास का निराकरण करता है।यह प्रचारमूलकता व धर्मांतरण पर विश्वास नहीं करता।यह धर्म भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है।उन्होंने धर्म के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।
इसके पश्चात शोध पत्र प्रस्तुतिकरण का सत्र आयोजित हुआ,जिसमे विभिन्न विश्वविद्यालयो के प्राध्यापक , शोधार्थी व छात्रों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये।आज के तकनीकी सत्र में श्री राजन फोगाट, शोध छात्र बीएचयू , वैशाली बिहार से इतिहास के प्राध्यापक डॉ. नागेश्वर कुमार, राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय की छात्रा कु. हनी (बी. एस-सी. द्वितीय वर्ष) एवं कु. निधि शर्मा (बी. एस-सी. द्वितीय वर्ष) तथा अन्तरराष्ट्रीय तुलसी संस्थान, सोरों के श्री उमेश पाठक के शोध पत्र प्रमुखतया प्रस्तुत हुए।
वेबिनार का संचालन संस्कृत विभाग के प्रभारी डॉ. विनोद कुमार ने किया। उन्होंने साथ ही साथ विषय से सम्बधित सारगर्भित टिप्पणियां कीं।
अध्यक्षता कर रही महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. प्रमोद कुमारी ने सभी वक्ताओं के विचारों का सार संग्रह प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत की संस्कृति विविधता में एकता में विश्वास रखती है भारत पर अनेकों आक्रमण हुए हैं लेकिन उन्हें झेलते हुए उनके सकारात्मक तत्वों को समाहित करके भारतीय संस्कृति आगे बढ़ती जा रही है।उन्होंने कहा कि हमे भारतीय संस्कृति के अभिलेखों व धरोहरों को संरक्षित करते हुए अपनी आने वाली पीढियों को अग्रसारित करना है।इसलिए अपनी धरोहरों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
आज के वेबिनार मे तकनीकी व्यवस्था, वेबिनार के संयोजक, डॉ. विजेंद्र सिंह के निर्देशन में सम्पन्न हुईं। इस अवसर पर आयोजन समिति के सभी सदस्यों, डॉ. बृजभूषण, डॉ. विजेंद्र सिंह, डॉ. विशाल कुमार, डॉ. विनोद कुमार, डॉ. ब्रिजेश राठी, डॉ. सुनील कुमार,डॉ. दीप्ति चौधरी,डॉ. प्रदीप कुमार,डॉ. पंकज चौधरी, श्रीमती सीमा सिंह,श्रीमती अंशु सिंह, डॉ. रामायन राम ने आज के कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना बहुमूल्य सहयोग दिया।राष्ट्रगान के साथ आज का एकदिवसीय कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।