एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब के अंतर्गत वेबिनार सम्पन्न
●राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब की ओर से 'नदियां भारतीय संस्कृति की संवाहक व संरक्षक हैं' विषयक वेबिनार सम्पन्न!
●वक्ताओं ने भारतीय संस्कृति के विकास में नदियों के महत्व को रेखांकित किया!
कांधला/16 जून/ राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,कांधला,शामली के 'एक भारत- श्रेष्ठ भारत' क्लब के तत्वावधान में आज दिनांक 16-6-2020 को महाविद्यालय स्तरीय वेबिनार का अयोजन किया गया।वेबिनार का विषय ' नदियां भारतीय संस्कृति की संरक्षक व संवाहक हैं' रहा।
वेब संगोष्ठी का शुभारम्भ वेबिनार की अध्यक्षता कर रहीं महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी जी ने किया।प्रारंभिक वक्तव्य देते हुए उन्होंने कहा कि नदियां हमारे जीवन की जीवनधारा हैं।भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक हर प्रकार के संस्कार नदियों के किनारे ही होते है।उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के सभी तत्व नदियों के साथ जुड़े हुए हैं।उन्होंने कहा कि विश्व की सभी पुरानी सभ्यताओं जैसे रोम,मिस्र,मेसोपोटामिया,मोहनजोदड़ो,हड़प्पा व चीन का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है।
वेबिनार के मुख्य वक्ता के रूप में अपना बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए महाविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. विनोद कुमार ने वेदों में नदियों के उल्लेख व प्राचीन भारतीय संस्कृति को आकार देने वाले धर्म ग्रंथों में सांस्कृतिक उपादान के रूप में नदियों के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि ऋग्वेद के दशम मंडल के पचहत्तरवें सूक्त में इक्कीस तथा सम्पूर्ण ऋग्वेद में पच्चीस नदियों का उल्लेख मिलता है।कुछ नदियां विलुप्त हो गईं,कुछ ने अपना रास्ता बदल लिया जबकि कालांतर में बहुत सारी नदियों के नाम मे परिवर्तन हो चुका है।उन्होंने वेदों को प्रकृति के प्रमाणस्वरूप बताया,व्यक्तियों के नाम जो वेदों में उल्लिखित हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है लेकिन प्राकृतिक उल्लेख पूरी तरह प्रामाणिक हैं।उन्होंने नदियों के किनारे विकसित हुई सभ्यता व संस्कृति का भी विस्तार से ज़िक्र किया।गंगा-जमुनी संस्कृति को भौगोलिक स्वरूप में स्पष्ट करते हुए नदियों को सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बताया।
वेबिनार में अपने विचार व्यक्त करते हुए महाविद्यालय के सहायक आचार्य, भौतिकविज्ञान, डॉ. विशाल कुमार ने कहा कि सभ्यता और संस्कृति में मूलभूत अंतर होता है,संस्कृति संस्कार से आती है।उन्होंने भारतीय संस्कृति को विश्व की प्राचीनतम संस्कृति बताया।उन्होंने कुम्भ मेले व नदियों के किनारे लगने वाले मेलों व त्योहारों के जरिये विकसित होने वाले लोक व्यवहार को संस्कृति के रूप में विकसित होने की बात कही।
सहायक आचार्य रसायन विज्ञान, डॉ. विजेंद्र सिंह ने मनुष्य के जंगलचारी जीवन के पश्चात खेती के विकास के साथ सभ्यता के विकसित होने की बात कही।उन्होंने कहा कि धीरे धीरे कला व संस्कृति का विकास मनुष्यो के व्यवहार व जीवन पद्धति के माध्यम से होता है।
पूर्व छात्रा इरा कलषाण ने भी नदियों के पौराणिक महत्व व वर्तमान परिस्थिति पर अपने विचार साझा किए और उनका सांस्कृतिक महत्व बताते हुए नदियों के नामों से गोत्र एवं स्थानों के नामो का चलन भी रेखांकित किया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने कहा कि संस्कृति प्रकृति में निहित है।हमारी संस्कृति का आधारभूत जीवन नदियों के किनारे ही विकसित होता है।उन्होंने कहा कि जीवन को संरक्षित करना है तो नदियों को संरक्षित करना ही पड़ेगा।उन्होंने नदियों के आधार पर विकसित होने वाली जीवन पद्धति की भी विस्तार से चर्चा की।उन्होंने अपने वक्तव्य का अंत 'गंगा तेरा पानी अमृत' गीत की संगीतमय प्रस्तुति के साथ किया।
वेबिनार का संचालन डॉ. विशाल कुमार ने किया।संयोजन डॉ. बिजेंद्र सिंह ने किया।इस अवसर पर डॉ. ब्रिजेश राठी,डॉ.सुनील कुमार,डॉ. प्रदीप कुमार,डॉ. पंकज चौधरी,डॉ. दीप्ति चौधरी,डॉ. रामायन राम,श्रीमती सीमा सिंह व अंशु सिंह समेत अनेक छात्राएं व अभिभावक ज़ूम ऐप के माध्यम से जुड़े रहे। राष्ट्रगीत के साथ वेबिनार सम्पन्न हुआ।
●राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय के एक भारत श्रेष्ठ भारत क्लब की ओर से 'नदियां भारतीय संस्कृति की संवाहक व संरक्षक हैं' विषयक वेबिनार सम्पन्न!
●वक्ताओं ने भारतीय संस्कृति के विकास में नदियों के महत्व को रेखांकित किया!
कांधला/16 जून/ राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,कांधला,शामली के 'एक भारत- श्रेष्ठ भारत' क्लब के तत्वावधान में आज दिनांक 16-6-2020 को महाविद्यालय स्तरीय वेबिनार का अयोजन किया गया।वेबिनार का विषय ' नदियां भारतीय संस्कृति की संरक्षक व संवाहक हैं' रहा।
वेब संगोष्ठी का शुभारम्भ वेबिनार की अध्यक्षता कर रहीं महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी जी ने किया।प्रारंभिक वक्तव्य देते हुए उन्होंने कहा कि नदियां हमारे जीवन की जीवनधारा हैं।भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक हर प्रकार के संस्कार नदियों के किनारे ही होते है।उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के सभी तत्व नदियों के साथ जुड़े हुए हैं।उन्होंने कहा कि विश्व की सभी पुरानी सभ्यताओं जैसे रोम,मिस्र,मेसोपोटामिया,मोहनजोदड़ो,हड़प्पा व चीन का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है।
वेबिनार के मुख्य वक्ता के रूप में अपना बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए महाविद्यालय के संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. विनोद कुमार ने वेदों में नदियों के उल्लेख व प्राचीन भारतीय संस्कृति को आकार देने वाले धर्म ग्रंथों में सांस्कृतिक उपादान के रूप में नदियों के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि ऋग्वेद के दशम मंडल के पचहत्तरवें सूक्त में इक्कीस तथा सम्पूर्ण ऋग्वेद में पच्चीस नदियों का उल्लेख मिलता है।कुछ नदियां विलुप्त हो गईं,कुछ ने अपना रास्ता बदल लिया जबकि कालांतर में बहुत सारी नदियों के नाम मे परिवर्तन हो चुका है।उन्होंने वेदों को प्रकृति के प्रमाणस्वरूप बताया,व्यक्तियों के नाम जो वेदों में उल्लिखित हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है लेकिन प्राकृतिक उल्लेख पूरी तरह प्रामाणिक हैं।उन्होंने नदियों के किनारे विकसित हुई सभ्यता व संस्कृति का भी विस्तार से ज़िक्र किया।गंगा-जमुनी संस्कृति को भौगोलिक स्वरूप में स्पष्ट करते हुए नदियों को सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बताया।
वेबिनार में अपने विचार व्यक्त करते हुए महाविद्यालय के सहायक आचार्य, भौतिकविज्ञान, डॉ. विशाल कुमार ने कहा कि सभ्यता और संस्कृति में मूलभूत अंतर होता है,संस्कृति संस्कार से आती है।उन्होंने भारतीय संस्कृति को विश्व की प्राचीनतम संस्कृति बताया।उन्होंने कुम्भ मेले व नदियों के किनारे लगने वाले मेलों व त्योहारों के जरिये विकसित होने वाले लोक व्यवहार को संस्कृति के रूप में विकसित होने की बात कही।
सहायक आचार्य रसायन विज्ञान, डॉ. विजेंद्र सिंह ने मनुष्य के जंगलचारी जीवन के पश्चात खेती के विकास के साथ सभ्यता के विकसित होने की बात कही।उन्होंने कहा कि धीरे धीरे कला व संस्कृति का विकास मनुष्यो के व्यवहार व जीवन पद्धति के माध्यम से होता है।
पूर्व छात्रा इरा कलषाण ने भी नदियों के पौराणिक महत्व व वर्तमान परिस्थिति पर अपने विचार साझा किए और उनका सांस्कृतिक महत्व बताते हुए नदियों के नामों से गोत्र एवं स्थानों के नामो का चलन भी रेखांकित किया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने कहा कि संस्कृति प्रकृति में निहित है।हमारी संस्कृति का आधारभूत जीवन नदियों के किनारे ही विकसित होता है।उन्होंने कहा कि जीवन को संरक्षित करना है तो नदियों को संरक्षित करना ही पड़ेगा।उन्होंने नदियों के आधार पर विकसित होने वाली जीवन पद्धति की भी विस्तार से चर्चा की।उन्होंने अपने वक्तव्य का अंत 'गंगा तेरा पानी अमृत' गीत की संगीतमय प्रस्तुति के साथ किया।
वेबिनार का संचालन डॉ. विशाल कुमार ने किया।संयोजन डॉ. बिजेंद्र सिंह ने किया।इस अवसर पर डॉ. ब्रिजेश राठी,डॉ.सुनील कुमार,डॉ. प्रदीप कुमार,डॉ. पंकज चौधरी,डॉ. दीप्ति चौधरी,डॉ. रामायन राम,श्रीमती सीमा सिंह व अंशु सिंह समेत अनेक छात्राएं व अभिभावक ज़ूम ऐप के माध्यम से जुड़े रहे। राष्ट्रगीत के साथ वेबिनार सम्पन्न हुआ।