Monday, 15 June 2020

एकदिवसीय राष्ट्रीय अन्तर्जाल शोधसंगोष्ठी सम्पन्न

●राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,कांधला, शामली में आयोजित हुआ एक दिवसीय राष्ट्रीय  वेबिनार!
● देश के विभिन्न विश्विविद्यालयों के शिक्षाविदों ने प्रस्तुत किये अपने विचार, 'कोविड-19 महामारी के समय प्राचीन भारतीय संस्कृति की उपादेयता' विषय पर आयोजित थी अंतर्जाल राष्ट्रीय संगोष्ठी!

कांधला/14 जून/ राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,कांधला,शामली में आज दिनांक 14-6-2020 को एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया। इस अंतर्जाल शोध संगोष्ठी का विषय  'कोविड-19 महामारी के समय प्राचीन भारतीय संस्कृति की उपादेयता' रहा।
    इस अंतर्जाल शोध संगोष्ठी का शुभारंभ आज प्रातः 10 बजे महाविद्यालय की प्राचर्या व शोध संगोष्ठी की संरक्षक प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने माँ सरस्वती के चित्र पर पुष्पांजलि व दीप प्रज्जवलन करके किया। इस दौरान छात्रा कु. रिया पंवार व कु. आँचल ने सरवस्ती वंदना के मन्त्रों का सस्वर पाठ किया तथा स्वाति जैन व इति जैन ने महाविद्यालय का कुल गीत प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. राजीव पांडेय,संयुक्त निदेशक,उच्च शिक्षा, उच्च शिक्षा निदेशालय,प्रयागराज, रहे उद्घाटन सत्र को आरंभ करते हुए उन्होंने अपने संबोधन में इस सामयिक विषय पर वेबिनार आयोजित करने के लिए महाविद्यालय की प्राचार्या महोदया व समस्त आयोजन समिति को साधुवाद दिया।उन्होंने कहा कि आज कोविड-19 से पूरा विश्व त्रस्त है ऐसी स्थिति में भारत की प्राचीन संस्कृति व जीवन पद्धति पूरे विश्व के लिए मार्गदर्शक का कार्य कर रही है।उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा पर भी कोविड की चुनौती है लेकिन हम अपनी प्राचीन शिक्षा पद्धति व आधुनिक तकनीक के सम्मिश्रण के द्वारा  इस कठिन दौर से निकल सकते हैं।अतः ऑनलाइन शिक्षण के जरिये वर्तमान संकट से उबरने की कोशिश हो रही है।
     उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि मेरठ मंडल के क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी डॉ. राजीव गुप्ता ने कहा कि भारतीय संस्कृति में महान तत्व समाहित हैं जिनसे हम कोरोना के संकट का सामना कर सकते हैं।उन्होंने पतंजलि के अष्टांगिक योग का महत्व बताते हुए कहा इसके जरिये आचार-विचार व जीवन की दिनचर्या को नियंत्रित रख सकते हैं।उन्होंने कहा मनुष्य में नकल की प्रवृत्ति होती है जिससे अपने देश के लोग विदेशी संस्कृति की नकल करते हैं।इसके बजाय हमे अपनी संस्कृति की पुरानी विरासत को बचा कर रखना होगा।उन्होंने कहा कि इस विपरीत परिस्थिति में भी हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए जिससे हमारा प्रतिरोधी तंत्र भी मजबूत होता है।उन्होंने आयुर्वेद व भारतीय संस्कृति की वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा के विषय मे भी बताया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने की तथा अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने प्राचीन भारतीय संस्कृति की विशिष्टता पर बल दिया।उन्होंने तुलसीदास के दोहे 'क्षिति,जल,पावक,गगन,समीरा।,पंच तत्व से बना सरीरा' का उल्लेख करते हुए भारतीय दर्शन व मीमांसा के महत्व को रेखांकित किया।उन्होंने कहा कि हमें भारतीय धर्म शास्त्रों में उल्लिखित जीवन पद्धति को फिर से जीना होगा।प्राचीन खान पान आचार विहार के माध्यम से हम  कोरोना को परास्त कर सकते हैं। उद्घाटन सत्र का संचालन शोध संगोष्ठी के संयोजक रसायन शास्त्र विभाग के प्रभारी डॉ. विजेंद्र सिंह ने किया।
      इसके पश्चात तकनीकी सत्र आरम्भ हुआ।तकनीकी सत्र में बीज वक्तव्य प्रो. कमलेश जगन्नाथ चौकसी,निदेशक,भाषा साहित्य विभाग,गुजरात विवि अहमदाबाद, ने दिया।अपने सुचिंतित व सुगठित वक्तव्य को उन्होंने पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुत किया।उन्होंने 'कोविड-19 की समाधनरूप भारतीय जीवन पद्धति' विषय पर वक्तव्य दिया।उन्होंने पाणिनि के धातुपाठ नामक ग्रन्थ का उल्लेख करते हुए कहा कि व्यक्ति जीवन से लेकर मृत्यु तक तीन प्रकार का जीवन जीता है व्यक्तिगत,पारिवारिक व सामाजिक।उन्होंने कहा कि सामाजिक जीवन को एक समान रूप से जीना आवश्यक है।उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन मे प्रगति के साथ बाधा भी आना अनिवार्य है।मनुष्य अपनी बाधाओं का भौतिक व अभौतिक तरीके से निदान करता है।कोरोना भी एक बाधा है।इसका निदान चिकित्सकीय के साथ साथ भावनात्मक भी होना चाहिए।उन्होंने वर्तमान कोरोना संकट को रामायण के राम वन गमन के प्रसंग से जोड़ते हुए बताया कि राम कोरोना पीड़ित व्यक्ति का प्रतीक है,लक्ष्मण डॉक्टरों का प्रतीक है।सीता नर्स का प्रतीक है।जिस प्रकार राम राक्षसों से युद्ध करके विजयी होते है उसी प्रकार कोरोना पीड़ित व्यक्ति वायरस रूपी राक्षस से लड़कर जीतता है।उन्होंने कहा कि वैदिक सभ्यता की शिक्षाओं का पालन सभी मनुष्यों को करना चाहिए।
    तकनीकी सत्र के दूसरे वक्ता डॉ. धर्मेंद्र कुमार द्विवेदी,एसोसिएट प्रो. राजकीय  महाविद्यालय,पुवारका,सहारनपुर ने 'संकट काल मे पथ प्रदर्शक प्राचीन शास्त्र व उनके उपदेश' विषय पर अपने विचार रखे।उन्होंने विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के आधार पर अपनी बात की।उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत मे प्री होस्पिटलिजेशन की संस्कृति रही है।उन्होंने सांख्य दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि जीवन प्रकृति व पुरुष के द्वैत से चलता है।प्रकृति पिता की तरह है।वह मनुष्य को जीवन देती है आज मनुष्य को भी प्रकृति की देखभाल पिता की तरह करनी चाहिये।उन्होंने कालिदास का उद्धरण देते हुए प्रकृति को शिव का रूप बताया।उन्होंने बताया कि हमे योग और प्राणायाम को अपनाना चाहिए
     महर्षि दयानन्द विवि रोहतक हरियाणा से जुड़े डॉ. रवि प्रभात ने प्राचीन आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त विषय पर बोलते हुए प्राचीन काल मे भारत के शिक्षा,संस्कृति,दर्शन,विज्ञान,चिकत्सा , अर्थव्यवस्था इत्यादि क्षेत्रो में आत्मनिर्भर होने की बात कही।उन्होंने कहा कि 2000 साल पहले तक भारत मे इन सबका अच्छा विकास था।अब इस कोरोना संकट ने हमे यह अवसर दिया है कि हम फिर से आत्मनिर्भर बनें।उन्होंने महात्मा गान्धी व दीन दयाल उपाध्याय के विचारों का उल्लेख करते हुये कहा कि उन्होंने गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की थी।आज हमारे पास यह अवसर है कि हम अपनी विरासत को समझें व आत्मनिर्भरता के सिद्धान्त को आगे बढ़ाएं।
     तकनीकी सत्र के अंतिम वक्ता उत्तराखण्ड संस्कृत विवि हरिद्वार के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय परमार ने कोविड-19 से प्रभावित प्राचीन व अर्वाचीन शिक्षा पद्धति: समस्या व समाधान विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये।उन्होंने प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के तीन उद्देश्य बताए- चरित्र का निर्माण,सामाजिक कल्याण व ज्ञान का निरंतर विकास।उन्होंने कहा की 1990 के बाद भूमण्डलीकरण के तहत शिक्षा का निजीकरण व बाजारीकरण होने लगा जिससे शिक्षा के उद्देश्य पूरे नही किये जा सकते।उन्होंने कहा कि वंचित तबके के छात्रों के लिए प्राथमिक स्तर तथा उच्च स्तर पर अच्छी शिक्षा संभव नही है।इसी तरह आज कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा को गुणगान किया जा रहा है जबकि ऑनलाइन शिक्षा कभी भी छात्रों के चरित्र का विकास नही कर सकती।यह एक अल्पकालिक समाधान है।सामाजिक संपर्क व संवाद के बिना शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।
      इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए वेबिनार की संरक्षिका व प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रमोद कुमारी ने सभी वक्ताओं के विचारों का सार संक्षेप प्रस्तुत किया।उन्होने कहा कि कोविड 19 में विश्व के ताकतवर देशों में मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है जबकि भारत मे बहुत ही कम है क्योंकि भारत की प्राचीन जीवन पद्धति रोगों से लड़ने में सक्षम है।हमारे प्राचीन शास्त्रों में वैज्ञानिक तथ्य हैं जिसे आज पूरी दुनिया मान रही है उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जिसप्रकार लॉक डाउन लागू किया उससे भी भारत कोरोना संकट से प्रभावी रूप से लड़ रहा है।उन्होंने प्राचीन हिन्दू धर्म व दर्शन की प्रशंसा करते हुए कहा कि हमारी प्राचीन संस्कृति में हर समस्या का समाधान है।आज जरूरत है उस प्राचीन संस्कृति को अपनाने की।उन्होंने भारतीय खान पान की विशेषता को बताते  हुए अदरक,लहसुन इत्यादि का महत्व समझाया जिससे हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं।उन्होंने मुख्य अतिथि,विशिष्ट अतिथि, अन्य गणमान्य अतिथियों का वेबिनार में जुड़ने के लिए आभार  व्यक्त किया।उन्होंने आयोजन समिति के संयोजक,सह संयोजक,आयोजन सचिव, सह अयोजन सचिव समेत समस्त आयोजन समिति व सभी श्रोताओं व प्रतिभागियों का भी आभार व्यक्त किया।
     इस सत्र का संचालन आयोजन सचिव , प्रवक्ता संस्कृत डॉ. विनोद कुमार ने किया।सभी अथितियों का धन्यवाद ज्ञापन, आन्तरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ के समन्वयक,महाविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. बृजभूषण  जी ने किया।तकनीकी सत्र व उद्घाटन सत्र के सफल संचालन में  डॉ. ब्रिजेश राठी, डॉ. सुनील कुमार,डॉ. दीप्ति चौधरी,डॉ. विशाल कुमार,डॉ. प्रदीप कुमार,डॉ. पंकज चौधरी,श्रीमती सीमा सिंह,श्रीमती अंशु व डॉ. रामायन राम ने सहयोग किया।अंत मे वेबिनार राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् के साथ संपन्न हुआ।