Saturday, 31 October 2020

राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता दिवस

कांधला/31 अक्टूबर 2020/ राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला शामली में आज दिनांक 31 अक्टूबर 2020 को लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 145वीं जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस का आयोजन किया गया साथ ही महर्षि वाल्मीकि जयंती का भी आयोजन किया गया। 

      इस क्रम में सर्व प्रथम महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. श्रीमती प्रामोद कुमारी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा महर्षि वाल्मीकि के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन तथा मल्यार्पण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। 

       डा. बृजेश राठी व डा. रामायन राम ने दोनो महापुरुषों के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की ।  इस मौके पर प्राचार्या प्रो श्रीमती प्रमोद कुमारी ने सभी को राष्ट्रीय एकता से संबंधित शपथ ग्रहण  कराई। 

      इसके पश्चात जूम ऐप के माध्यम से सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के जीवन परिचय व राष्ट्र के प्रति योगदान के विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए प्राचार्या प्रो श्रीमती प्रमोद कुमारी ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल एक अदम्य साहसी व्यक्ति थे। बचपन से ही वे निडर प्रवृत्ति के थे। वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। वे महात्मा गांधी के अनन्य अनुयायी थे। उनके पिता को 1857 के स्वाधीनता संग्राम मे स्वतंत्रता सेनानियों का सहयोग करने के कारण अंग्रेज़ी सरकार ने जेल मे डाल दिया था। देश प्रेम वल्लभ भाई पटेल को विरासत में मिला था। उन्होंने विलायत से बैरिस्टर की डिग्री ली और एक सफल वकील के रूप में स्थापित हुए लेकिन गांधी जी के आह्वान पर वे स्वतन्त्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने बारदोली एवम् खेड़ा के किसान आंदोलन का नेतृत्व् किया। यहीं से उन्हे सरदार की उपाधि मिली। 

     भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में उन्होंने 562 देसी रियासतों का भारत में विलय कर अपनी अद्भुत नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया।  जूनागढ़ व हैदराबाद की रियासतों को शामिल कराने के लिए उन्होंने अपने कठोर नेतृत्वकारी भूमिका का प्रदर्शन किया।  उन्होंने कहा कि आज हमें अपने राष्ट्र की एकता व अखंडता को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए अपना योगदान करना चाहिए। 

   इस अवसर पर छात्राओं के बीच निबंध प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिसका विषय ' आतंकवाद व नक्सलवाद: राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़े बाधक' रहा। 


      प्राचार्या महोदया ने महर्षि वाल्मीकि के जीवन पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि जी का मूल नाम रत्नाकर था। वे लूट मार का कार्य किया करते थे लेकिन सत्संग के फलस्वरूप उन्होंने राम नाम का स्मरण प्रारम्भ किया और आगे चलकर उन्होंने 'रामायण' महाकाव्य की रचना की जिसके माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज में मर्यादाओं का निर्धारण किया। रामायण भारतीय जीवन की मूल सांस्कृतिक प्रेरणा शक्ति की तरह है। हमें वाल्मीकि जी के विचारों का अनुसरण करना चाहिए। 

       कार्यक्रम का संचालन डा. रामायन राम ने किया। विचार गोष्ठी में जूम ऐप के माध्यम से महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापक जुड़े रहे। अनेक छात्राएं भी ऑनलाईन जुड़ी रहीं। राष्ट्र गान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।