प्राचार्य की कलम से



सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो एक पुरुष की शिक्षा से उसका स्वयं का केवल एक परिवार लाभान्वित होता है।जबकि यदि एक महिला सुशिक्षित होती है तो उसका लाभ दो परिवारों को प्राप्त होता है ।परिणामतः स्त्री शिक्षा समाज के लिए द्विगुणित फलदायी होती है।लेकिन हमारा दुर्भाग्य रहा है कि मध्यकालीन स्वार्थपूर्णसोच एवं कुनीतियों के कारण भारतवर्ष में नारी को लम्बे समय तक शिक्षा से वंचित रखा गया जिसका प्रभाव  आज भी ग्रामीण भारत में स्पष्ट दिखाई देता है।किन्तु  भारतीय समाज पुनः जागृत हो रहा है और बालिकाओं को  शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराते हुए उन्हें उच्च शिक्षा मुहैया कराने के लिए  कटिबद्ध है।इस प्रतिबद्धतापूर्ण स्वप्न को साकार करने हेतु सन् 1979 में एक विस्तृत ग्रामीण भूभाग की छात्राओं को उच्चशिक्षा उपलब्ध कराने के लिए शामली एवं बड़ौत के मध्य सहारनपुर रोड पर , गंगायमुना संस्कृति के परिचायक, कांधला (कर्णदल)नामक एक छोटे से महाभारतकालीन  ऐतिहासिक स्थल पर राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय कांधला की स्थापना हुयी जो कि 39 वर्षों से अनवरत बालिकाओं को उच्चशिक्षा प्रदान करता हुआ  उनको स्वसमर्थ एवं आत्मनिर्भर बना रहा है।इस लक्ष्य की सम्पूर्ति हेतु सम्पूर्ण वर्ष ,महाविद्यालय में होने वाली शैक्षणिक एवं सहशैक्षणिक गतिविधियों की यथार्थ अभिव्यक्ति के लिए इस 'ऋतम्भरा' नामक अंतर्जाल पत्रिका का प्रकाशन किया जा रहा है।। इसके माध्यम से आप जान पाएँगे कि एक ओर ,जहाँ महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना,रेंजर्स,महिला- प्रकोष्ठ,शक्तिपरी,सांस्कृतिक साहित्यिक परिषद आदि विभिन्न समितियों के द्वारा छात्राओं में अंतर्निहित विभिन्न प्रतिभाओं को उभारने का प्रयास किया जाता है तो वही विद्वान् प्रोफेसरों द्वारा समसामयिक एवं ज्वलन्त लोकोपयोगी विषयों पर विशेष व्याख्यान एवं विचारगोष्ठियों का आयोजन करा कर छात्राओं के बौद्धिक स्तर में वृद्धि करने का भी भरसक प्रयत्न किया जाता है।मैं 'ऋतम्भरा' के सम्पादक डॉ विनोद कुमार एवं प्रकाशन दल को महाविद्यालय की इस प्रथम अंतर्जाल-समाचारपत्रिका के सफल प्रकाशन हेतु बधाईयाँ एवं भूरिशः शुभकामनाए संप्रेषित करता हूं ।
डा० अतुल शर्मा